शादी के करीब दो साल के बाद कमला ने एक सुन्दर सी बेटी को जन्म दिया। कमला का मन था की उसकी बेटी का नाम उसके नाम के साथ मिलता जुलता होना चाहिए। पर जोखयी की माँ अपने पौत्री का नाम मन्नू रखना चाहती थी। पर यहाँ जोखयी ने कमला का दिल रखते हुए बच्ची का नाम कपिला रखा।
कपिला माँ-बाप और दादी के प्यार में पलने और बढ़ने लगी। एक समय ऐसा आ गया की कपिला का विद्यालय में दाखिला करा दिया गया। कपिला वहां अच्छे से पढ़ने लगी। और एक-२ करके समय के साथ आगे बढ़ने लगी। कपिला की पढ़ाई-लिखाई को देखकर कपिला की दादी और पोती – पोता नहीं चाहती थी। वो कपिला में कपिला के दादा का सपना पूरा होते देखने लगी थी। कपिला दादा का सपना था की जोखयी बड़ा होकर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पढ़े और जब वहां से बाहर निकले तो उनका ,उनके गांव और देश नाम रोशन करे। कपिला की दादी स्वार्थी हो गयी थी। इसलिए जब कभी कमला दूसरे बच्चे की चर्चा करती, कपिला की दादी पूरे घर में तूफ़ान मचा देती। वो दूसरा जोखयी नहीं चाहती थी।
दुलारी देवी ने कक्षा ८ तक पढ़ाई किया था। राधेपुर गांव में दुलारी देवी का बहुत सम्मान था। पढ़ी लिखी होने के कारण वो दो बार ग्राम प्रधान भी बन चुकी थी। पर इसबार उन्होंने प्रधान बनने से मना कर दिया। वो अपना सारा समय और ज्ञान अपनी पोती को देना चाहती थी। दुलारी देवी के इस दखल से कभी-२ कमला का मन बहुत खिन्न हो जाता था और उसके कारण घर का वातावरण चंद पलो के लिए बिगड़ जाता था। जोखयी को इन सब बातो में कोई रस नहीं आता था। खेत में कौन सी फसल लगनी है, ट्रैक्टर किसका लेना है, खाद कहाँ से लानी है ,पानी का जुगाड़ कहाँ से करना है इत्यादि में ही जोखयी का मन रमा रहता था। इन सब बातो से कभी समय मिला तो कपिला से थोड़ी गपसप कर ली।
राधेपुर में एकमात्र पाठशाला दुलारी देवी की प्रधानी की देन थी। दुलारी देवी प्रतिदिन कपिला के पाठशाला से घर वापस आने के बाद उसके साथ-२ पढ़ाई करती थी। कपिला का मन भी पढ़ाई में बहुत लगता था। इसलिए दादी पोती की जोड़ी खूब बनती थी। समय धीरे-२ बीतता गया और एक समय ऐसा आ गया की कपिला के परिषद के परीक्षा का दिन आ गया। परीक्षा का स्थान इसबार राधेपुर के अपने पाठशाला में था। इससे दुलारी देवी काफी खुश थी। इसलिए की उनको ही कपिला के साथ ही जाना पड़ता क्योकि जोखयी अपना खेत न छोड़ता और कमला की सोच थी कि अगर लड़की ज्यादा पढ़ लिख गयी तो,शादी व्याह में बड़ी अड़चन आती है।
पूरे परीक्षा के दौरान दुलारी देवी एकदम भोर में उठती मंदिर जाती और फिर कपिला के साथ पाठशाला जाती। परीक्षा के परिणाम का दिन आ गया। दुलारी देवी को रात भर नींद नहीं आई। कपिला की भी नींद भोर में ही खुल गयी थी। पर राधेपुर में दैनिक समाचार पत्र तो करीब दस बजे ही आता है। दोनों दादी-पोती का समय काटे नहीं कट रहा था। जोखयी सुबह-२ ही हमेशा की तरह खेतो में चला गया। कमला हमेशा की तरह बुदबुदाती हुयी अपने घर के काम समेटने में लगी थी। समय के पहाड़ पर चढ़ते-२ जब दादी-पोती थक गए तो दोनों मंदिर चले गए। मंदिर में पुजारी को छोड़कर केवल एकाध ही लोग थे। उन लोगो ने दुलारी देवी को प्रणाम किया, जबाब में बस दुलारी देवी सिर हिलाकर अभिवादन स्वीकार किया और सीधे मंदिर के अंदर चली गयी। कपिला ने रामचरित मानस का पाठकर अपने दादी को सुनाने लगी।
“एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा।।
मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी।।”
तभी मंदिर के बाहर से किसी के चिल्लाने की आवाज आयी, और आवाज शोर में बढ़ती जा रही थी। दुलारी देवी ने कपिला को बैठने का इशारा करके खुद बाहर देखने के लिए गयी। जोखयी अपने सिर पगड़ी बाधे और मिट्टी से अलकृत शरीर में नाचते हुए मंदिर की तरफ अम्मा-२ चिल्लाते हुए चला रहा था। साथ में सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहने पाठशाला के प्रधानध्यापक अपनी साइकिल पर एक दैनिक पत्र लिए चले आ रहे थे। इन दोनों के पीछे कमला देवी और गांव चला आ रहा था। पास आकर प्रधानध्यपक ने बोला अम्मा हमारी बिटिया ने पूरे प्रदेश में १०वे स्थान पर आई है। इतना सुनते ही दुलारी देवी के आखो से ख़ुशी की धार निकल आई और पीछे दुबक के खड़ी कपिला के गले लग गयी। कमला को मतिभ्रम हो गया था क्या करे समझ में नहीं आ रहा था तभी कपिला आई और जोर से माँ को चिपक गयी। जोखयी ने आज शाम को मंदिर पर पूरे गांव वालो को खाने पर आमंत्रित कर दिया। जोखयी माँ के पास जाकर कपिला के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला “अम्मा कपिला ने बाबूजी का सपना पूरा कर दिया। कपिला ने जबाब देते हुए बोला “अम्मा अभी बाबा का सपना नहीं पूरा हुआ आगे और पढ़ना है।”कहानी यही खत्म नहीं होती बल्कि शुरू होती है। कपिला ने १५ साल पहले जो चिंगारी राधेपुर में लायी थी आज वो आज वो आग बन गयी है। दुलारी देवी और कपिला के इन प्रयासों से राधेपुर का हर बच्चा अपने गांव प्रदेश और देश के विकास में लगा है। चाहे वो किसी भी धर्म का या जाति का या फिर किसी लिंग का हो कोई भेद नहीं है इस गांव में।
इस कहानी को एक दूसरे पहलू से सोचिये। अगर जोखयी थोड़ा सा पढ़ाई में सफल होता तो उसके पिता की मृत्यु शायद जल्दी नहीं होती तो जोखयी खेतो काम नहीं कर होता। फिर कपिला की भी शायद गांव मे पढ़ाई करते-२ शादी हो जाती या फिर सिर्फ पास होने लिए पढ़ रही होती। घर में और भी बच्चे होते कमला और दुलारी देवी इन्ही सब में परेशान होती। दुलारी देवी प्रधान तो शायद बन जाती पर पाठशाला बनवा न पाती और उनके अंदर कपिला को पढ़ाने का जूनून भी न होता।
हमारे इस भारतीय समाज को अगर समझा जय तो हर बार हमको किसी भी अच्छी शुरुवात के लिए एक चिंगारी या एक पथ प्रदर्शक चाहिए । इस चिंगारी से या पथ प्रदर्शक से हम तभी जलते या प्रभावित होते है जब हमारा स्वार्थ जुड़ता है, नहीं तो हम सुसुप्त पड़े रहते है। मेरा बस यहाँ इतना ही कहना है कि किसी के लिए कुछ मत करो बस अपने लिए ही कुछ अच्छा करो ( दूसरो का कोई नुकसान किये बिना )। जैसे दुलारी देवी और कपिला ने किया और परिणाम स्वरुप पूरा राधेपुर जागृत हो गया। हमारे अंदर जागृति की इतनी कमी है की हमको, लाखो करोड़ो रुपये खर्चकर शौचलाय और स्वछता जैसी मूलभूत बातो को बताना पड़ है। राधेपुर को विकास के लिए जोखयी के पिता की बलिदान रुपी चिंगारी और दुलारी देवी-कपिला जैसी पथ प्रदर्शक का इन्तजार करना पढ़ा। जबकि एक पाठशाला के अलावा दुलारी देवी ने गांव वालो के लिए कुछ नहीं किया। प्रत्येक ग्रामवासी ने अपना विकास खुद किया, इसलिए पूरे राधेपुर का विकास हो गया। अड़चन तो हर एक काम में आती है, दुलारी देवी ने उसके बारे में सोचा ही नहीं और ठीक हमको भी यही करना है।
अगर हमारे देश की अधिक से अधिक माता-पिता अपने बच्चो जागृत करने में सफल रहे तो सोचिये हमारा देश की अगली पीढ़ी तक कहाँ जायेगी । कम से कम स्वच्छता,शौचालय, नारी सम्मान इत्यादि पर विज्ञापन तो नहीं देने पड़ेंगे और प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति को लाल किले की प्राचीर से इन छोटी बातो के लिए समय गवाना नहीं पड़ेगा।
