मन व्यथित है




मन व्यथित है सुबह जल्दी उठने से,

दुविधा है मन में नाश्ते में क्या खाया जाय,

झल्लाहट है बच्चे को तैयार कर स्कूल भेजने की,

ऑफिस के रास्ते में ट्रैफिक जाम से और,

कार से कार की टक्कर से भी मन व्यथित है।

हैरान हूँ परेशान हूँ ऑफिस के काम से और

दुविधा में हूँ अपने साहब के ज्ञान और अज्ञान से,

झल्लाहट है अपने सहकर्मी के काम से,

अपने मेज पर पड़ी फाइलों के ढेर से और

बड़े साहब के डाट से भी मन व्यथित है।

चिंतित है मन पिता की व्यर्थ पीड़ा से,

दुविधा में हूँ माता और पत्नी की लीला से,

झल्लाहट है बच्चो की शरारतो से,

उनकी भविष्य के प्रति उदासीनता से और

घर के बढ़ते हुए खर्चो से भी मन व्यथित है।

चाह थी कि लम्बी छुट्टी और मिले बच्चो से गले मिले,

पत्नी से हसे बोले,प्यार और घर बार की दो चार बाते करे,

पिता की चिंता दूर करे और माता की सेवा करे,

ऑफिस, काम, सहकर्मी और साहब से दूर,

प्रदूषण से दूर नीले गगन के तले  परिवार के संग।

ईश्वर प्रसन्न हुए और बोले तथास्तु और कोरोना की महामारी फैलाई,

पूरा विश्व रुका हुआ है और प्रदषण भी दूर है नीले आकाश के साथ,

ना ही ऑफिस जाना,ना ही कार की टक्कर और बिना ट्रैफिक के सड़क है,

ना ही साहब की डाट, ना सहकर्मी से झल्लाहट और ना ही फाइलों को ढेर है

पर व्यथा का फेर ज्यो का त्यो,मन अभी भी व्यथित है कुछ कथित और कुछ अकथित है।




4 Responses

  1. Sachin says:

    Nice poem

  2. Sunita Mittal says:

    Kya baat bhaiya ..jeevan ki sacchai and insaan ki fitrat ko kya shandaar Andaaz mein chand lines mein aapne bayan kiya hai ..really superbbbbb👏👏👏👏👏

  3. Mahendra says:

    Lajawab Varun ji

  4. Mahendra says:

    Very good Varun ji

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